जीवन के लिये श्री सांई के उपदेश
"शिर्डी परम भाग्यशालिनी है, जहां एक अमूल्य हीरा है। जिन्हें तुम इस प्रकार परिश्रम करते हुए देख रहे हो, वे कोई सामान्य पुरुष नहीं हैं। अपितु, यह भूमि बहुत भाग्यशालिनी तथा महान् पुण्यभूमि है, इसी कारण इसे यह रत्न प्राप्त हुआ है।
केवल गत जन्मों के अनेक शुभ संस्कार एकत्रित होने पर ही ऐसा दर्शन प्राप्त होना सुलभ हो सकता है। यदि आप श्री सांई बाबा को एक दृष्टि भर कर देख लेंगे, तो आपको सम्पूर्ण विश्व ही सांईमय दिखलाई पड़ेगा।
यदि श्री सांई बाबा के उपदेशों का, जो कि वैदिक शिक्षा के समान ही मनोरंजक और शिक्षाप्रद है, ध्यानपूर्वक श्रवण एंव मनन किया जाऐ, तो भक्तों को अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाएगीः
आज से मै जीवन के लिये श्री सांई के उपदेश श्रंखला नाम से यह टापिक पेश कर रहा हूँ!
अपने भक्तों के कल्याण का सदैव ध्यान रखने वाले सांई कहते हैः
"जो प्रेमपूर्वक मेरा नामस्मरण करेगा, मैं उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण कर दूंगा। उसकी भक्ति मे उतरोत्तर वृद्धि होगी। जो मेरे चरित्र और कृत्यों का श्रध्दापूर्वक गायन करेगा, उसकी मै हर प्रकार से सदैव सहायता करूंगा"
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
जय सांई राम़।।।
"मेरे भक्तों को घर, अन्न तथा वस्त्रों का कभी अभाव नही होगा। यह मेरा बेशिष्टय है कि जो भक्त मेरी शरण आ जाते है और अंतकरण से मेरे उपासक है, उनके कल्याणार्थ मै सदैव चिंतित रहता हूँ"
कृष्ण भगवान ने भी गीता में यही समझाया है। इसलिये भोजन तथा वस्त्र के लिये अधिक चिन्ता न करो। यदि कुछ मांगने की अभिलाषा है, तो ईश्वर को ही मांगो। सांसारिक मान व उपाघियों के बदले ईश्वर कृपा तथा अभयदान प्राप्त करो। सदैव मेरे स्मरण में मन को लगाये रखो, तांकि वह देह, सम्पति व ऐश्वर्य की ओर प्रवृत न हो। तब चित स्थिर, शान्त व निर्भय हो जाएगा।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
"कर्म पथ अति रहस्यपूर्ण है। यद्यपि मै कुछ भी नही करता, फिर भी लोग मुझे ही कर्मों के लिये दोषी ठहराते है। मैं तो एक दर्शक मात्र ही हूं। केवल ईश्वर ही एक सताधारी और प्रेरणा देने वाले है। वे ही परम दयालु है। मै न तो ईश्वर हूं और न मालिक, केवल उनका एक आज्ञाकारी सेवक ही हूं और सदैव उनका स्मरण किया करता हूं। जो निरभिमान होकर, अपने को कृतज्ञ समझ कर उन पर पूर्ण विश्वास करेगा, उसके कष्ट दूर हो जाएंगे और उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी"
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
जो मेरा स्मरण करता है, उसका मुझे सदैव ही ध्यान रहता है। मुझे यात्रा के लिए कोई भी साधन - गाड़ी, तांगा या विमान की आवश्यकता नही है। मुझे तो जो प्रेम से पुकारता है, उसके सम्मुख मैं अविलम्ब ही प्रगट हो जाता हूँ।
"मै अपना वचन पूर्ण करने के लिये अपना सर्वस्व निछावर कर दूंगा। मेरे शब्द कभी असत्य न निकलेंगें। "
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
एक दिन दोपहर की आरती के पश्चात भक्तगण अपने घरों को लौट रहे थे, तब बाबा ने निम्नलिखित अति सुन्दर उपदेश दिया –
तुम चाहे कही भी रहो, जो इच्छा हो, सो करो, परंतु यह सदैव स्मरण रखो कि जो कुछ तुम करते हो, वह सब मुझे ज्ञात है । मैं ही समस्त प्राणियों का प्रभु और घट-घट में व्याप्त हूँ । मेरे ही उदर में समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए है । मैं ही समस्त ब्राहांड़ का नियंत्रणकर्ता व संचालक हूँ । मैं ही उत्पत्ति, व संहारकर्ता हूँ । मेरी भक्ति करने वालों को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता । मेरे ध्यान की उपेक्षा करने वाला, माया के पाश में फँस जाता है । समस्त जन्तु, चींटियाँ तथा दृश्यमान, परिवर्तनमान और स्थायी विश्व मेरे ही स्वरुप है ।
"जो दूसरों को पीड़ा पहुंचाता है, वह मेरे ह्रदय को दुःख देता है तथा मुझे कष्ट पहुंचाता है। इसके विपरीत जो स्वंय कष्ट सहन करता है, वह मुझे अधिक प्रिय है"
ॐ सांई राम।।।
(a) Accept your lot cheerfully. If you acquire wealth, become humble the way a tree laden with fruit bows down. Money is a necessity but don't get obsessed with it. Yet, don't be a miser, be generous.
(b) Perform your duty conscientiously and with detachment, not regarding yourself as the doer.
(c) Surrender the fruit of action to god so that action does not bind
you. It is ties of indebtedness from previous births, which bring humans and other beings together.
(d) Give rein to the negative states (avariciousness, anger, hatred, pride, etc.) only as much as is essential to go through the karma earmarked for this physical existence.
(e) To steady the mind, idol worship is a way, even though the idol is
not God. If you do puja with devotion and emotion, you can concentrate better.
(f) Herculean effort is necessary for god-realization. There are four elements in sadhana: Discrimination between the eternal and the ephemeral: that Brahman alone is true, the world is not. Next, renouncing all desire about this life or the thereafter. The third is to inculcate these qualities: control of the mind, bearing without anguish the fated pain and sorrow, remaining ensnared by maya, knowing that money, wife, children and relatives are all ephemeral. The fourth is an intense desire for liberation.
"जो मुझे अत्यधिक प्रेम करता है, वह सदैव मेरा दर्शन पाता है उसके लिए मेरे बिना सारा संसार ही सूना है। वह केवल मेरा ही लीलागान करता है। वह सतत् मेरा ही ध्यान करता है और सदैव मेरा ही नाम जपता है। जो पूर्ण रूप से मेरी ही शरण मे आ जाता है और सदा मेरा ही स्मरण करता है, अपने ऊपर उसका यह ऋण मै उसे मुक्ति (आत्मोपलब्धि) प्रदान करके चुका दूंगा। जो मेरा ही चिंतन करता है, और मेरा प्रेम ही जिसकी भूख-प्यास है और जो पहले मुझे अर्पित किये बिना कुछ भी नही खाता, मैं उसके अधीन हूं। जो इस प्रकार मेरी शरण मे आता है, बह मुझसे मिल कर उसी तरह एकाकार हो जाता है, जिस तरह नदियां समुंद्र से मिल कर तदाकार हो जाती है। अतएव महत्ता और अहंकार का सर्वथा परित्याग करके तुम्हें मेरे प्रति, जो तुम्हारे ह्रदय मे आसीन है, पूर्ण रूप से समर्पित हो जाना चाहिए"
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
जय सांई राम़।।।
"'तुम कहीं भी रहो, कुछ भी करो पर याद रखो कि तुम जो भी करते हो वह मुझे मालूम है। मैँ प्रत्येक के हृदय में हूँ और सबका आन्तरिक शासक हूँ। चराचर सृष्टि मुझसे ही आच्छादित है। मैं नियामक, नियंत्रक और दृश्य सृष्टि का सूत्रधार हूँ। मैं माता हूँ, समस्त प्राणियों का उद्गम हूँ। मैं सत्व, रज, तम तीनों गुणों का समत्व हूँ, इन्द्रयों तथा बुद्धि का संचालक हूँ और सृष्टि का रचयिता, पालक और संहारक हूँ। जो मुझमें अपना ध्यान केन्द्रित करेगा उसे कोई भी, कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचावेगा किन्तु जो मुझे भूलेगा, माया उसे आघात पहुँचावेगी। सभी जीव जन्तु तथा समस्त दृश्यमान सचराचर जगत मेरा ही शरीर और रूप है।' ठीक ऐसी ही घोषणा भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता के दसवें अध्याय में "विभूति योग" के अन्तर्गत की है।
परब्रह्म के अवतार साईं बाबा की यही स्तुति कर हम कृतार्थ हो जावें कि -
"ब्रह्मा दक्षः कुबेरो यम वरुनमरुद्रह्नि महेन्द्र रुद्राः
शैला जद्यः समुद्रा ग्रहगण मनुजा दैत्य गन्धर्व नागाः।
द्वीपा नक्षत्र तारा रवि वसु मुनयो व्योम भूरश्विनौ च
संलीना यस्य वपुषि स भगवान् पातु यो विश्वरूपः॥"
अर्थात् "जिनके शरीर में ब्रह्मा, दक्ष, कुबेर, यम, वरुण, वायु, अग्नि, चन्द्र, इन्द्र, शिव, पर्वत, नदी, समुद्र, ग्रह, मनुष्य, दैत्य, गन्धर्व, नाग द्वीप, नक्षत्र, तारे, सूर्य, वसु, मुनि, आकाश, पृथ्वी और अश्वनीकुमार आदि सभी लीन हैं, वे विश्वरूप भगवान हमारा कल्याण करे।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
जय सांई राम़।।।
"मैं अपने गुरु के पास बारह वर्ष रहा। उन्होंने मेरा पालन पोषण किया। उनके पास भोजन और वस्त्र की कोई कमी नहीं थी। वे प्रेम से परिपूर्ण थे। यही नहीं वे प्रेम के अवतार थे। वे मुझे सबसे अधिक चाहते थे। मेरे गुरु के समान कोई दूसरा गुरु नही होगा। जब भी मैं उनकी ओर देखता था वे ध्यान मग्न ही जान पड़ते थे। उस समय हम दोनों परमानन्द से भर जाते थे। भूख-प्यास भूल कर मैं रात-दिन अपने गुरु को ही अपलक देखता रहता था। उनके बिना मैं बेचैनी का अनुभव करता था। मेरे लिये ध्यान करने के लिये अपने गुरु के सिवाय दूसरा कुछ भी नहीं था। वे मेरे एकमात्र आश्राय थे। मेरा मन हमेशा ही मेरे गुरु में रमा रहता था। यही 'एक पैसे' की दक्षिणा थी और धीरज रखना 'दूसरे पैसे' की। धीरज और गुरु के प्रति निष्ठा दोनों जुड़वा सन्तानें हैं।
"मेरे गुरु ने मुझसे कभी कोई आशा नहीं की बल्कि सब समय मेरी रक्षा करते रहे। मैं उनके साथ रहता था और कभी कभी उनसे दूर भी चला जाता था। पर मैंने उनके प्रति अपने प्रेम में कभी कमी का अनुभव नहीं किया। इस मस्जिद में बैठ कर मैं सच कह रहा हूँ। मेरे गुरु ने जब मुझे कोई मंत्र या उपदेश नहीं दिया तब मैं तुम्हें कैसे दे सकता हूँ। मुझसे इसकी आशा मत करो। अपने गुरु में विश्वास रखो। मुझे अपने हृदय के नेत्र से देखो, तुम्हें परमार्थ अवश्य मिलेगा।" साईं बाबा की बातें सुन कर राधा बाई देशमुख को पूर्ण रूप से तृप्ति मिली और उसने अपना उपवास तोड़ दिया।
इस घटना से ऐसा जान पड़ता है कि राधा बाई देशमुख की आड़ से अपने गुरु के विषय में संसार को बताना साईं बाबा की एक लीला ही थी। इसके माध्यम से उन्होंने गुरु के प्रति प्रेम, भक्ति, श्रद्धा, विश्वास और निष्ठा रखने का उपदेश दिया है। गुरु, मंत्र दे कर शिष्य को साधना में लगा देते हैं पर साईं बाबा तो सदगुरू थे जिन्होंने अपने प्रति भक्ति रखने वाले लाखों भक्तों को मुक्त किया और आज भी करते हैं।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
कर्म पथ अति रहस्यपूर्ण है । यघपि मैं कुछ भी नहीं करता, फिर भी लोग मुझे ही कर्मों के लिये दोषी ठहराते है । मैं तो एक दर्शक मात्र ही हूँ । केवल ईश्वर ही एक सत्ताधारी और प्रेरणा देने वाले है । वे ही परम दयालु है । मैं न तो ईश्वर हूँ और न मालिक, केवल उनका एक आज्ञाकारी सेवक ही हूँ और सदैव उनका स्मरणकिया करता हूँ । जो निरभिमान होकर अपने को कृतज्ञ समझ कर उन पर पूर्ण विश्वास करेगा, उसके कष्ट दूर हो जायेंगे और उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी ।
"इस विश्व में असंख्य सन्त हैं, परन्तु अपना पिता (गुरू) ही सच्चा पिता (सच्चा गुरू) है। दूसरे चाहे कितने ही मधुर वचन क्यों न कहते हों, परन्तु अपना गुरू-उपदेश कभी नही भूलना चाहिये। संक्षेप मे सार यही है कि शुद्ध ह्रदय से अपने गुरू से प्रेम कर, उनकी शरण जाओ और उन्हें श्रद्धापूर्वक साष्टांग नमस्कार करो। तभी तुम देखोगे कि तुम्हारे सम्मुख भवसागर का अस्तित्व वैसा ही है, जैसा सूर्य के समक्ष अंधेरे का"
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
"मेरे पास आओ, खुद को समर्पित करो, फिर देखो"....'सबको प्यार करो, क्योंकि मैं सब में हूं। अगर तुम पशुओं और सभी मनुष्यों को प्रेम करोगे, तो मुझे पाने में कभी असफल नहीं होगे।' 'एक बार शिरडी की धरती छू लो, हर कष्ट छूट जाएगा।' कितने सरल सूत्र दिये है ना अपने बाबा सांई ने। कितना मुश्किल बना दिया है ना हमनें है ना?
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
"व्यर्थ में किसी से उपदेश प्राप्त करने का प्रयत्न न करो। मुझे ही अपने विचारों तथा कर्मों का मुख्य ध्येय बना लो और तब तुम्हे निस्संदेह ही परमार्थ की प्राप्ति हो जाएगी। मेरी ओर अनन्य भाव से देखो, तो मैं भी तुम्हारी ओर वैसे ही देखूंगा। इस मस्ज़िद में बैठ कर मै सत्य ही बोलूंगा कि किन्ही साधनाओं या शास्त्रों के अध्यन की आवश्याकता नहीं, वरन् केवल गुरू में विश्वास ही पर्याप्त है। पूर्ण विश्वास रखो कि गुरू ही कर्ता है और वह धन्य है, जो गुरू की महानता से परिचित हो, उसे हरि, हर और ब्रह्मा (त्रिमूर्ति) का अवतार समझता है।"
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांईॐ सांई राम।।।
जय सांई राम।।।
"रहम नज़र करो अब मोरे सांई
तुम बिन नही मुझे माँ-बाप-भाई"
अपने गुरू के प्रति शिष्य के मन में विशेष आस्था, श्रद्धा एवम् समर्पण भाव होना चाहिए। फिर आपकी जीवन नैया श्री गुरू भवसागर पार कराते है। पूरी श्रद्धा एवम् समर्पण से हमें श्री गुरू पर सब कुछ छोड़ देना चाहिए। फिर देखिए, बाबा सांई आपके साहिल है, बाबा सांई आपके मांझी। और श्री सांई ही आपकी मंजिल है। फिर कुछ पाने की चाह नही रहेगी।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।